विश्लेषण: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक हफ्ते से ज्यादा के विचार-विमर्श के बाद बीजेपी ने दोनों राज्यों का नेतृत्व डॉ. मोहन यादव और विष्णुदेव साय को सौंप दिया है. पार्टी ने दोनों राज्यों में कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर यह नेतृत्व सौंपा है. आख़िर इसके पीछे क्या कारण हैं?
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव परिणाम 2023: आखिरकार चर्चा के बाद बीजेपी ने मध्य प्रदेश की कमान उज्जैन दक्षिण विधायक डॉ. मोहन यादव को सौंप दी है. वह ताकतवर ओबीसी नेता शिवराज सिंह चौहान के उत्तराधिकारी होंगे. यह एक परंपरा है भाजपा आलाकमान ने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर चौंकाने वाला फैसला लिया है। जारी है क्योंकि पिछले नौ दिनों से डॉ. यादव का नाम रेस में कहीं नहीं था.
ऐसा ही कुछ हुआ छत्तीसगढ़ में जहां पार्टी ने 8 दिनों की माथापच्ची के बाद विष्णु देव साय को प्रदेश अध्यक्ष चुना… हालांकि साय का नाम रेस में था, लेकिन इस अहम पद और जिम्मेदारी को पाने के लिए उन्होंने कई वरिष्ठ नेताओं को भी दरकिनार कर दिया.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि बीजेपी दोनों पड़ोसी राज्यों में नए नामों पर दांव क्यों लगा रही है.
- सबसे पहले बात करते हैं छत्तीसगढ़ की.
बात करते हैं छत्तीसगढ़ की. बीजेपी ने वहां विष्णुदेव साय को कमान सौंपी है. वहीं रेस में रमन सिंह, अरुण साव और रेणुका सिंह जैसे नाम थे. इसके पीछे की वजह भी दिलचस्प हैं.
1. विष्णुदेव के पक्ष में खेला गया ‘आदिवासी’ कार्ड
छत्तीसगढ़ में पहली बार बीजेपी ने किसी आदिवासी चेहरे को राज्य का शीर्ष पद दिया है. ऐसे में साफ कहा जा सकता है कि बीजेपी ने सोची-समझी रणनीति के तहत विष्णुदेव साय को राज्य का नया मुख्यमंत्री चुना है, जो बहुत महत्वपूर्ण साबित होता है.
फिलहाल बीजेपी ने 29 आरक्षित सीटों में से 17 पर जीत हासिल की है. बता दें कि 2018 में कांग्रेस ने इनमें से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी.
2. पड़ोसी राज्य होंगे प्रभावित
विष्णु देव साय को छत्तीसगढ़ का सीएम बनाकर बीजेपी ने पड़ोसी राज्यों मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की राजनीति पर भी निशाना साधा है. आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए 6 सीटें, ओडिशा-झारखंड में 5-5 सीटें , महाराष्ट्र में 4 सीटें और तेलंगाना में 2 सीटें। पार्टी को लगता है कि इस फैसले का असर 2024 के आम चुनाव पर भी पड़ेगा।
इसके अलावा बाकी सभी कारण वही हैं जो मध्य प्रदेश में आगे बताएँगे –
- बात करते हैं मध्य प्रदेश की.
1. बीजेपी ने ओबीसी राजनीति को धार दी
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज शामिल थे, लेकिन आखिरकार बीजेपी ने राज्य की कमान डॉ. मोहन यादव को सौंप दी. इसके पीछे कई कारण हैं लेकिन पहला कारण यह है कि वह ओबीसी समुदाय से आते हैं। ओबीसी समुदाय मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा समुदाय है। इसी कारण से 2003 के बाद से बीजेपी ने हमेशा ओबीसी नेता को राज्य का नेतृत्व दिया है।
2. पार्टी ने नई पीढ़ी को आगे बढ़ाया
डॉ. मोहन यादव को सीएम बनाकर जेपी नड्डा और उनकी टीम ने संदेश दिया है कि अब मध्य प्रदेश में नई पीढ़ी की राजनीति होगी. मोहन यादव अभी 58 साल के हैं और उनके पास काफी समय बचा है. वे अपेक्षाकृत राजनीतिक दृष्टि से युवा.
3. बीजेपी में हाईकमान सुप्रीम
डॉ. मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी ने यह संदेश दिया है कि पार्टी में आलाकमान ही सर्वोच्च है. वे बड़े नामों के दबाव में नहीं आते हैं और जिस नेता को चाहें उसे कमान सौंप सकते हैं. इससे पहले गुजरात और महाराष्ट्र में भी बीजेपी ऐसा कर चुकी है.
दरअसल, मध्य प्रदेश में चुनाव नतीजे आने के बाद से ही कई नेता अपने-अपने तरीके से अपनी अहमियत जाहिर कर रहे हैं. चुनाव के बाद खुद शिवराज सिंह चौहान यह संदेश दे रहे थे कि ‘लाडली ब्राह्मण’ योजना ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई है. नतीजों के मुताबिक वह लगातार महिलाओं से मिल रहे थे और वह राज्य के उन इलाकों का दौरा कर रहे थे जहां बीजेपी कमजोर थी.
यह एक तरह का संदेश था कि शिवराज फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. दूसरी ओर, कैलाश विजयवर्गीय कह रहे थे कि यह महिलाओं की जीत नहीं बल्कि मोदी की जीत है. जाहिर है कि इससे वह अपना दावा मजबूत कर रहे थे .
4. 2024 और यूपी-बिहार पर भी नजर
मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ-साथ यूपी-बिहार की राजनीति पर भी निशाना साधा है.
दरअसल, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी जातीय जनगणना जैसे नारे को मुद्दा बना रही है. बीजेपी के इस फैसले के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है. क्योंकि यूपी-बिहार में ओबीसी समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा है. सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले इन दोनों राज्यों के अलावा यादव वोट भी बड़ी संख्या में हैं. मोहन यादव को सीएम बनाकर मध्य प्रदेश में अगर पार्टी यादव वोट का थोड़ा प्रतिशत भी जीतने में कामयाब हो जाती है तो यह बीजेपी के लिए बड़ी ताकत साबित होगी.
मकसद पार्टी में नई पीढ़ी को लाना और ये संदेश देना है कि आलाकमान ही सर्वोच्च है. अब देखना ये है कि कितना इन फैसलों से 2024 के चुनाव में बीजेपी को फायदा होगा.
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