पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने शुक्रवार को कहा कि अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के पूर्वजों की लालसा और व्यक्तिवाद ने सिखों को ‘घोड़ा चोर’ का कलंक लगाया है। इसलिए यह माफी के योग्य भी नहीं हैं।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह ने सेक्टर-35 के म्युनिसिपल भवन में नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में कहा कि 1957 में भारत में मतदान हुआ तो जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। प्रतिनिधिमंडल उनके नेतृत्व में अरब मुल्कों का दौरा किया। बिक्रम सिंह मजीठिया के पूर्वजों में से एक, तत्कालीन उप-रक्षा मंत्री सुरजीत सिंह मजीठिया, इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल था।
भगवंत सिंह ने कहा कि भारतीय सेना को अरब देश के एक राजा ने अरबी नस्ल के शानदार घोड़े तोहफे में दिए। यह घोड़े सैन्य प्रशिक्षण केंद्र, मेरठ में प्रशिक्षण के लिए भेजे गए थे। जहां सैन्य जानवरों को विशेष प्रशिक्षण मिलता है अरबी राजा को दो महीने बाद पता चला कि घोड़े मेरठ नहीं पहुंचे थे। राजा ने इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से अपनी नाराज़गी व्यक्त की।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह ने बताया कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण नेहरू ने सुरजीत सिंह मजीठिया से तुरंत इस्तीफा ले लिया था। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘इस घटना ने सिखों के सच्चे किरदार पर सवाल खड़े किए। दुःख की बात है कि आज भी मेरठ के प्रशिक्षण केंद्र में कोई दस्तारधारी सिखाने जाता है तो उसे घोड़ा चोर की नजर से देखा जाता है।मान ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत का पानी भरने वाले मजीठिया खानदान को अंग्रेजों ने सर की उपाधि दी थी, जो उनके पिट्ठुओं को दी जाती थी।
भगवंत सिंह ने कहा कि 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड के अगले दिन, हत्याकांड के दोषी जनरल डायर को भोजन दिया गया था। इससे उनकी मूर्खता का पता चलता है। जनरल डायर को सिरोपा और क्षमा भी दी गई। मान ने कहा कि यह और भी हैरानी की बात है कि सिरोपा देने वाले जत्थेदार अरूड़ सिंह मान के नाना थे, जो लोकसभा सांसद हैं। मान ने कहा कि “इतिहास कभी मिटाया नहीं जा सकता, मजीठिया के पूर्वजों के किरदार इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।””
“शिअद का बेड़ा डूब गया।” मुख्यमंत्री ने मान शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की दयनीय स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि इस पार्टी का बेड़ा अब डूब चुका है और सुखबीर सिंह बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया और हरसिमरत बादल के सुर भी नहीं मिलते हैं।